Swami Vivekanand Ji , स्वामी विवेकानंद जी का जीवन परिचय in hindi

Svami Vivekanand ji, स्वामी विवेकानंद जी का जीवनी  In Hindi :


दोस्तो स्वागत है आप सब का Learn How Hindi में । आज हम महान भारत देश के महान महापुरुष के अदभुत जीवन और उनके विचारों तथा व्यक्त्वि के बारे में पढेगे। इस पोस्ट में हम आपको स्वामी विवेकानंद जी के बारे में कुछ बाते बताने वाले है जैसे की स्वामी विवेकानंद जी कौन थे? स्वामी विवेकानंद जी के जीवन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां तथा उनके द्वारा बताई गई कुछ विचारों कुछ बातों को समझेंगे , इस पोस्ट में हम आपको स्वामी जी के बारे में अवगत कराएगें।


स्वामी विवेकानंद जी के बारे में कौन नही जानता है? अपने भी क़भी न कभी उनके बारे में जरूर से पढ़ा होगा । किसी से उनके बारे में सुना होगा या कभी अपनी किताबों में पढ़ा होगा, तो आज हम उन्ही के बारे में आपको बताएगे।


vivekanand ji ka jivan parichay

स्वामी विवेकानंद जी का जन्म 12 जनवरी को कोलकाता में हुआ था । इनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त तथा माता का नाम भुवनेश्वरि देवी था। इनके बचपन का नाम नरेंद्र था।
         इनके घर का वातावरण एकदम धार्मिक था , ये बड़े संत स्वभाव के थे। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई इन्हें कुस्ती, बॉक्सिंग, तैराक, व्यायाम आदि का बड़ा सौक था। यह बचपन मे बहुत ही सुंदर और आकर्षक थे ये जहा जाते लोग इन्हें देखते ही रह  जाते थे।

इन्होंने बी.ए. तक कि शिक्षा प्राप्त की।इसी समय इन्होने भारतीय संस्कृति का विस्तृत जानकारी प्राप्त कर ली । दार्शनिक विचारों के उद्यान से इन्हें सत्य जानने की इच्छा होने लगी। नरेंद्र का पहला प्रश्न था - "क्या ईश्वर का अस्तित्व है?"  इस प्रश्न का उत्तर जानने ये कई लोगो से वार्ता की पर समाधान नही मिला । फिर अपने चचेरे भाई के माद्यम से कोलकाता के में एक तेजस्वि सन्त रहते थे । वे सन्त स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी थे। नरेंद्र ने पूछा - " महानुभव , क्या अपने ईश्वर को देखा है?" जवाब मिला " हाँ ठीक वैसे ही जैसे तुम्हे देख रहा हु, बल्कि तुमसे भी स्पस्ट रूप से।" इस वार्ता में नरेंद्र के मन का सभी संसय दूर हो गया।  और उनके आद्यात्मिक शिक्षा का श्री गणेश हो गया।
   
धीरे धीरे स्वामी  जी ने अपनी असीम शक्ति द्वारा नरेन्द्र को सभी भरपुर ज्ञान दिया और उन्होंने इस हठी युवक में युगप्रवर्तक और अपने  संदेशवाहक को पहचान लिया। स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी के मृत्यु के बाद नरेन्द्र संदेशवाहक एयर एक युगपरिवर्तक के रूप में मठ छोड़कर निकल पड़े। और सम्पूर्ण भारत मे घूम घूम कर रामकृष्ण जी के विचारों को फैसला प्रारंभ कर दिया।


स्वामी जी ने अपने जीवन के कुछ उद्देश्य निर्धारित किए ।सबसे बड़ा कार्य धर्म की पुनर्स्थापना का था । उस समय भारत ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व में बुद्धि वादियों की धर्म से श्रद्धा उड़ती जा रही थी । अतः आवश्यक था धर्म की ऐसी व्याख्या प्रस्तुत करना जिससे मानव जीवन सुख में हो सके ।दूसरा कार्य था हिंदू धर्म और संस्कृति पर हिंदुओं की श्रद्धा जमाए रखना जो उस समय यूरोप के प्रभाव में आते जा रहे थे। तीसरा कार्य था भारतीयों को अपनी संस्कृति इतिहास और आध्यात्मिक परंपराओं योग्य उत्तराधिकारी बनाना स्वामी जी की वाणी और विचारों से भारतीयों में यह विश्वास जागृत हुआ कि उन्हें किसी के सामने मस्तक झुकाने की और लज्जित होने की आवश्यकता नहीं है।



शिकागो अमेरिका में स्वामी विवेकानंद जी



11 सितंबर  सन 1893 को विश्वमंच पर स्वामी जी से  अपने ओजस्वी भाषण से संसार को यह मानने पर विवश कर दिया कि भारत सच मे विश्वगुरु है। खेतरी नरेस जी की विवेकानंद जी के शिष्य थे । इनके सहयोगी से अनेक बाधाओ को पर कर ये भी सम्मेलन में शामिल हुए। विशाल भवन में हजारों की संख्या में महिलाओं और पुरुषों की भीड़ थी । सभी वक्ता अपना भाषण लिख कर आए थे पर स्वामी जी ने ऐसा कुछ नही किआ था। धर्म सभा मे स्वामी जी को सबसे अंत मे बोलने का अवसर मिला। क्योकि न तो कोई उन्हें जनता था और नही समर्थन कराता था।



स्वामी जी ने ज्यो ही सभी को संबोधित किया" अमेरिका वाशी बहनो और भाइयो" ! त्यों ही अगले कई मिनट तक तालिया बजती ही रही क्योकि सभी वक्ता सम्बोधन केलिए " महिलाओं और पुरूषों " शब्द का प्रयोग कर रहे थे। स्वमी जी ने अपने सम्बोधन से ही सबका मन जीत लिया। सभी वक्ता अपने अपने धर्म की बात कर रहे थे, परन्तु स्वामी जी से सभी धर्मों को एकाक बताया । और उन्होंने कहा कि लड़ो मत साथ चलो। उनके इस प्रकार के ओजस्वी भाषण ने उन्हें पूरे विश्व मे ख्याति  प्राप्त हुई और भारत का नाम रोशन कर दिया।  अमेरिका के सभी अखबारो में उनकी जम कर प्रसंशा की।

"यदि कोई व्यक्ति यह समझता है कि वह दूसरे के धर्म का विनाश कर अपने धर्म की विजय कर लेगा तो बंधुओं ! यह आशा कभी पूरी नहीं होने वाली है सभी धर्म हमारे अपने हैं इस भाव से उन्हें अपना कर ही हम अपना और संपूर्ण मानव जाति का विकास कर पाएंगे यदि भविष्य में कोई ऐसा धर्म उत्पन्न हुआ जिसे संपूर्ण विश्व का धर्म कहा जाएगा तो वह अनंत और निर्बाध होगा | वह धर्म ना तो हिंदू होगा ना मुस्लिम होगा न बौद्ध होगा ना इसाई  अपितु  इन सब  के मिलन और सामंजस्य से पैदा होगा|"


ये शब्द भी स्वामी जी के ही है जिसे उन्होंने विश्व मंच पर ही कहा था। स्वामी जी विदेश यात्रा का एक ही उद्देश्य था की भारतवासियों के अंधविश्वास को तोड़ना की समुद्र यात्रा पाप होता है और दूसरा यह कि भारत में अंग्रेजी प्रभाव वाले लोगों को वह भी दिखाना चाहते थे कि भारतीय भले ही अपनी संस्कृति का आदर करें या ना करें पश्चिमी के लोग जरूर उनसे प्रभावित हो सकते हैं।

इंग्लैंड और अमेरिका में पर्याप्त प्रचार  प्रसार कार्य करने के बाद स्वामी जी भारत वापस आए यहां पहुंच कर अपने कार्य को दृढ़ आधार देने तथा मानव मात्र की सेवा के उद्देश्य से उन्होंने 1897 ईस्वी में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की मिशन का लक्ष्य सर्वधर्म समभाव था।

4 जुलाई 1902 को प्रातः काल प्रात काल उठकर अपने सभी कार्यों को कर कर शिष्यों के बीच बैठकर भोजन किया और छात्रों को संस्कृत में पढ़ाई और इसी तरह अपनी दिनभर की क्रियाकलापों को किए और शाम को आरती की घंटी बजने के बाद वह अपने कमरे में चले गए और गंगा की ओर देखने लगे कुछ समय पश्चात भूमि पर सोए हुए चिरनिद्रा में चले गए इस समय इनकी उम्र 39 वर्ष थी।

"शरीर तो एक दिन जाना ही है फिर आलसियों की भांति क्यों जिया जाए जंग लग कर मरने की अपेक्षा कुछ कर के मरना अच्छा है ।उठो जागो और अपने अंतिम लक्ष्य की पूर्ति हेतु कर्म में लग जाओ।"

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 आशा है आप को स्वामी विवेकानंद जी के बारे में ये बाते अच्छी लगी होगी । और इससे आपको कुछ सीख भी मिली होगी। अगर आपको यह जानकारी बढ़िया लगी तो इसे शेयर जरूर करे।



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