Bhagat singh, भगत सिंह जी के जीवन से जुड़ी कहानी हिंदी में :

भगत सिंह जी की जीवनी और उनसे जुड़ी कहानी:

जै हिन्द दोस्तो  स्वागत है आप सबका इस Learn How Hindi में । ऐसा तो हो नही सकता कि आप इस पोस्ट को पढ़ रहे हो और अपने कभी शाहिद भगत सिंह जी के बारे में सुना न हो । हमे पता है कि  आप सब लोग जानते होंगे कि भगत सिंह जी एक स्वतंत्रता सेनानी थे। और उनके बहादुरी की बहुत से किस्से है। जब भी हम किसी इसे महान सेनानी के बारे में पढते है या फ़िर कही सुनते है तो हमारे मन मे भी विरता  का भाव उत्पन्न हो जाता है। जब हम उनके जीवन के बारे में  उनके संघर्ष के बारे में पढ़ते है, तो हमे उसका आभास होता है। इसे ही बहुत सारे वीर हमारे इस भारत भूमि पर जन्म लिया है। आज हम उन्ही में से एक वीर भगत सिंह जी के बारे में पढेगे और उनके  जीवन परिचय को जानेगे।


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भगत सिंह जी बचपन से ही साहसी और वीर प्रकिती के थे । इनके बचपन का नाम वीरा था। भगत सिंह का जन्म लायलपुर (जो अब पाकिस्तान में है जिले में )27 सितंबर 1909 को हुआ था। इनके पिता का नाम किशन सिंह जो अपने चार भाइयों के साथ लाहौर की सेंट्रल जेल में बंद थे । उस समय पूरे देश में अंग्रेजी शासन के खिलाफ विद्रोह की ज्वाला धधक रही थी।

इनकी माता का नाम विद्यावती इन्होंने अत्यंत लाड़ -दुलार के साथ उनका पालन- पोषण किया इस परिवार में संघर्ष और देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी थी जिसका प्रभाव भगत सिंह पर बचपन से ही दिखाई पड़ रहा था। इनकी बड़ी बहन का नाम अमरो था।

उस दिन 'वीरा 'स्कूल के लिए कह कर घर से निकला। संध्या हो गई लेकिन घर नहीं लौटा ।जलियांवाला बाग की घटना से हम सभी दुखी और घबराए हुए थे ।काफी देर रात बीते वह गुमसुम सा घर आया ।मैंने कहा -"कहां गया था वीरा ? सब जगह तुझे ढूंढा ,चल फल खा ले ।"वह फफक कर रोने लगा मैंने उसे आमतौर पर कभी रोते हुए नहीं देखा था ।उसने अपने नौकर की जेब से 1 सीसी निकाली जिसमें मिट्टी भरी हुई थी ।उसने कहा मिट्टी नहीं अमरो यह शहीदों का खून है ।"उसे जिसे वह रोज खेलता उसे चूमता और उसी में रोज तिलक लगाकर, फिर स्कूल जाता था।
         - भगत सिंह की बड़ी   बहन अमरो के संस्मरण

अमरो का यही वीरा आगे चलकर महान क्रांतिकारी भगत सिंह के नाम से विख्यात हुआ।

भगत सिंह बचपन से ही असाधारण किस्म के कार्य किया करते थे। एक बार मैं अपने पिता के साथ कहीं जा रहे थे। रास्ते में ही पिता की एक घनिष्ठ मित्र मिल गए और वह अपने खेतों में बुवाई का काम कर रहे थे। मित्र को पाकर पिता उनसे हालचाल पूछने लगे भगत सिंह वही खेत में छोटे-छोटे तिनकों को रोकने लगे ।पिता के मित्र ने पूछा "यह क्या कर रहे हो भगतसिंह?" बालक भगत सिंह ने उत्तर दिया - "बंदूकें बो रहा हूं "भगत सिंह जैसे जैसे बड़े होते हुए उनकी विशिष्टताएं और उजागर  होती गई।

इस समय अंग्रेजी सरकार द्वारा एक कानून लाया गया । रोलेट एक्ट इस कानून का पूरे देश में विरोध किया जा रहा था । इसी कानून के विरोध में 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में एक सभा हो रही थी । अचानक अंग्रेजी पुलिस आई और चारों ओर से प्रदर्शनकारियों को घेर लिया पुलिस अधिकारी जनरल डायर ने गोली चलाने का आदेश दे दिया ।सैकड़ों मासूम मारे गए इस घटना का पूरे देश को झकझोर कर रख दिया । उस समय भगत सिंह छोटे थे । इस घटना से उनका गहरा असर पड़ा यहां के  बाग की मिट्टी लेकर देश के लिए बलिदान होने की शपथ ली। 
           आरंभिक पढ़ाई पूरी करने के बाद भगत सिंह आगे की शिक्षा के लिए नेशनल कॉलेज लाहौर गये।  वहां उनकी मुलाकात सुखदेव और यशपाल से हुई। तीनों मित्र बन गए और क्रांतिकारी गतिविधियों में बढ़-चढ़कर भाग लेने लगे । कुछ समय बाद सन 1926 ईस्वी में इन्होंने लाहौर में नौजवान सभा का गठन किया इस सभा का उद्देश्य था-

1. स्वतंत्र भारत की स्थापना करना।

2. एक अखंड राष्ट्र के निर्माण के लिए देश के नौजवानों में देशभक्ति की भावना जागृत करना।

3. आर्थिक सामाजिक और औद्योगिक क्षेत्र में आंदोलन में सहयोग प्रदान करना।

4. किसानों और मजदूरों को संगठित करना।

लाहौर में उस समय सारी क्रांतिकारी गतिविधियां हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन के बैनर से संचालित हो रही थी । भगत सिंह को एसोसिएशन का मंत्री बनाया गया 30 अक्टूबर 1928 को लाहौर में साइमन कमीशन आने वाला था । भगत सिंह ने साइमन कमीशन के बहिष्कार की योजना बनाई । लाला लाजपत राय की अध्यक्षता में साइमन कमीशन का डटकर विरोध किया । "साइमन वापस जाओ" और "इंकलाब जिंदाबाद "के नारे लगाए प्रदर्शनकारियों पर अंग्रेजी पुलिस ने बर्बरतापूर्वक लाठीचार्ज किया। लाला लाजपत राय के सिर पर गंभीर चोट आई जो बाद में उनकी मृत्यु का कारण बन गई । इस घटना से भगत सिंह आक्रोश में आकर उन्होंने पुलिस कमिश्नर सांडर्स की हत्या कर दी और लाहौर पुलिस को चकमा देकर भाग निकले।


अप्रैल 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त नई दिल्ली के केंद्रीय असेंबली में बम फेंका और गिरफ्तारी दी। इस धमाके के साथ उन्होंने कुछ पर्चे भी फेके ।  भगत सिंह और उनके साथियों पर सांडर्स हत्याकांड और असेंबली बम कांड से संबंधित मुकदमा लाहौर में चलाया गया । मुकदमे के दौरान उन्हें और उनके साथियों को लाहौर सेंट्रल जेल में रखा गया जेल में कैदियों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया जाता था ।उन्हें प्राथमिक सुविधाएं और भोजन ठीक से नहीं दिए जाते थे ।भगत सिंह ने यह बात ठीक नहीं लगी उन्होंने इसके विरोध में भूख हड़ताल शुरू कर दी आखिर अंग्रेजी शासन को उनके आगे झुकना पड़ा और कैदियों को बेहतर सुविधाएं मिलने लगी ।7 अक्टूबर 1930 को भगत और राजगुरु व सुखदेव को फांसी की सजा सुनाई गई ।तीनों क्रांतिकारियों को 23 मार्च 1931 को फांसी दे दी गई।
    इनकी शहादत की तिथि 23 मार्च को हमारा देश "शहीद दिवस" के रूप में मनाता है। इन के क्रांतिकारी विचार दर्शन और शहादत को यह देश कभी नहीं भुला सकेगा। 


कुछ विचार:



1. बहारो को सुनाने के लिए बहुत ऊँची आवाज की आवश्यकता होती है।
असेम्बली में जो बम फेके गए थे उनका शीर्षक यही था।
2. " क्रांति से हमारा आशय खून खराबा नही। क्रांति का विरोध करने वाले लोग केवल पिस्तौल, बम ,तलवार और रक्त पात को ही क्रांति का नाम देते हैं ।परंतु क्रांति का अभिप्राय यह नहीं है । क्रांति के पीछे की वास्तविकता शक्ति जनता द्वारा समाज की आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था में परिवर्तन करने की इच्छा ही होती है। 


भगत सिंह से जुड़ी एक कहानी जेल की भी है जेल में जो महिला कर्मचारी भगत सिंह की कोठरी की सफाई करने जाती थी ।।उसे भगतसिंह प्यार से बेबी कहते थे । आप इसे बेबे  क्यों कहते हैं ?  एक दिन किसी जेल अधिकारियों ने पूछा तो वह बोले जीवन में दो व्यक्तियों नहीं नहीं मेरी गंदगी उठाने का काम किया है । एक बचपन में मेरी मां और जवानी में इस मां ने इसलिए दोनों माताओं को प्यार से मैं बेबे  कहता हूं फांसी से एक  दिन पहले जेलर खान बहादुर अकबर अली ने उनसे पूछा - आप की कोई खास इच्छा हो तो बताइए मैं उसे पूरी करने की कोशिश करूंगा।

सिंह ने कहा हां मेरी एक खास इच्छा है ,और उसे आप ही पूरा कर सकते हैं मैं बेबे  के हाथ की रोटी खाना चाहता हूं।

जेलर  ने जब यह बात उस सफाई कर्मचारी से कही तो वह स्तब्ध रह गई । उसने भगत सिंह से कहा "सरदार जी मेरे हाथ ऐसे नहीं हैं कि उन से बनी रोटियां आप खाएं" भगत सिंह ने प्यार से उनके दोनों कंधे थपथपाते हुए कहा  मॉ जिन हाथों से बच्चों की गंदगी साफ करती है अपने हाथों से खाना बनाती है तुम चिंता मत करो तुम रोटियां बनाओ।

तो दोस्तों यह रही शहीद भगत सिंह के जीवन से जुड़ी  कुछ कहानियां और कुछ जानकारियां हमें ऐसे महान क्रांतिकारियों और महान महापुरुषों के जीवन से कुछ सीख लेनी चाहिए। 
आशा है दोस्तों आपको यह जानकारी अच्छी लगी होगी यदि यह जानकारी आपको अच्छी लगी तो आप इसे शेयर जरूर करें।




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